Indian Muslim women can receive alimony from their husbands following divorce, rules Supreme Court...✍

According to the recent ruling by the Supreme Court of India, a divorced Muslim woman can now seek alimony from her former husband by filing a claim for maintenance under Section 125 of the Criminal Procedure Code (CrPC). This decision extends the legal right to maintenance to all women, not just married women, emphasizing that maintenance is not charity but a fundamental right. The court clarified that the Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act 1986 does not override secular law, and maintenance applies to all married women, regardless of their religion. If a Muslim woman gets divorced during the pendency of her application under Section 125 CrPC, she can also seek additional remedies under the Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Act, 2019. This landmark judgment ensures greater financial security for divorced Muslim women in India. 

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भारतीय मुस्लिम महिलाएं तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त कर सकती हैं…

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के अनुसार, तलाकशुदा मुस्लिम महिला अब दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा दायर करके अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है। यह फैसला सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही नहीं, बल्कि सभी महिलाओं को भरण-पोषण का कानूनी अधिकार देता है, इस बात पर जोर देते हुए कि भरण-पोषण दान नहीं बल्कि एक मौलिक अधिकार है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून को खत्म नहीं करता है, और भरण-पोषण सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। अगर कोई मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने आवेदन के लंबित रहने के दौरान तलाक ले लेती है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत अतिरिक्त उपाय भी मांग सकती है। यह ऐतिहासिक फैसला भारत में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए अधिक वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है।